विषय:-- स्वैच्छिक
सूरत बला है, बला है ,बला है!
सीरत कला है,कला है,कला है!
दुनिया की भाग दौड़ में, तूं और,
कितना चला है ,चला है,चला है!
उसने ख़ुदा के नाम पर, हमेशा,
रब को छला है,छला है,छला है!
महकते चन्दन वनों में , देखिए,
अजगर पला है, पला है,पला है!
अंधेरों से टकराने के लिए,
दीपक जला है,जला है,जला है!
कहने को बुरा है मगर आपका,
करता भला है, भला है, भला है!
उच्च शिखर पर चढ़ने के बाद ही,
सूरज ढला है , ढला है ,ढला है!
इरादा अटल था कि नभ छू लेंगे,
लेकिन टला है ,टला है , टला है !
वक्त जरूरत पर , बरफ के जैसा,
पत्थर गला है, गला है , गला है!
** महेंद्र भट्ट
(कवि-लेखक-व्यंग्यकार)
ग्वालियर
आँचल सोनी 'हिया'
06-Sep-2022 12:40 AM
Achha likha hai 💐
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shweta soni
05-Sep-2022 03:54 PM
Behtarin
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Abhinav ji
05-Sep-2022 09:24 AM
Very nice
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